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गंगा नदी के तट पर एक सिद्ध साधु निवास करते थे। वे ज्ञानी होने के साथ-साथ चमत्कारिक शक्तियों के भी धनी थे।

एक बार जब वे गहन ध्यान में लीन थे, तभी एक बाज के पंजे से छूटकर एक छोटी-सी चुहिया उनकी हथेली पर आ गिरी। उसकी चमकदार काली आँखें और पतली पूँछ देखकर साधु मोहित हो गए। घर ले जाने से पहले उन्होंने अपने मंत्रबल से उसे एक सुंदर कन्या में बदल दिया।

घर पहुँचकर उन्होंने पत्नी से कहा—”तुम्हें तो हमेशा से एक संतान की इच्छा थी, इसलिए आज से यह हमारी बेटी होगी। इसे पूरे प्यार और देखभाल से पालो।”

साधु की पत्नी ने बेटी को देखते ही उसे हृदय से अपना लिया और उसे राजकुमारी जैसा पालन-पोषण दिया। समय बीतता गया और वह नन्ही बच्ची एक सुंदर युवती बन गई। जब वह विवाह योग्य हुई, तो साधु दंपति ने उसके लिए योग्य वर की तलाश शुरू की।

साधु ने कहा—”हमारी बेटी का विवाह सबसे श्रेष्ठ से होना चाहिए। मेरे विचार से सूर्यदेव सर्वोत्तम हैं।” पत्नी ने सहमति दी और साधु ने अपनी मायावी शक्तियों से सूर्य को आमंत्रित किया। उन्होंने सूर्य से अपनी पुत्री का हाथ माँगा, लेकिन कन्या ने इनकार कर दिया—”पिताजी, यह बहुत तेज और गर्म है! मुझे इससे भी बेहतर वर चाहिए।”

निराश होकर साधु ने सूर्य से सलाह माँगी। सूर्य ने कहा—”बादल मुझसे भी शक्तिशाली हैं, क्योंकि वे मेरी किरणों को रोक सकते हैं।”

साधु ने बादलों को बुलाया और विवाह का प्रस्ताव रखा, लेकिन कन्या ने फिर मना कर दिया—”यह तो बिल्कुल काला और भद्दा है! मैं इससे विवाह नहीं करूँगी।” साधु ने बादलों से सुझाव माँगा, तो उन्होंने कहा—”पवनदेव सर्वश्रेष्ठ हैं, क्योंकि वे मुझे भी उड़ा देते हैं।”

पवनदेव के सामने प्रस्ताव रखने पर भी कन्या ने अस्वीकार कर दिया—”यह तो कभी एक जगह ठहरता ही नहीं! मुझे स्थिर और मजबूत वर चाहिए।” पवनदेव ने पर्वत का नाम सुझाया—”पर्वत मुझसे भी ताकतवर हैं, क्योंकि वे मेरे वेग को रोक देते हैं।”

पर्वत के पास जाने पर भी कन्या ने मना कर दिया—”यह तो बहुत ठंडा और कठोर है! मुझे इससे भी बेहतर पति चाहिए।” अंत में पर्वत ने कहा—”चूहा मुझसे भी शक्तिशाली है, क्योंकि वह मेरे अंदर भी बिल बना लेता है।”

जैसे ही साधु ने चूहे को बुलाया, कन्या खुशी से चिल्ला उठी—”हाँ! यही मेरा सही जीवनसाथी है!”

साधु समझ गए कि यही इसकी नियति है। उन्होंने मंत्रबल से कन्या को पुनः चुहिया बना दिया। दोनों ने विवाह किया और सुखपूर्वक रहने लगे।

शिक्षा: “मनुष्य अपने मूल स्वभाव को कभी नहीं बदल सकता।”