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एक बार की बात है, एक गाँव में रामसिंह नाम का एक समझदार किसान रहता था। उसके पाँच पुत्र थे—राजू, महेश, सुरेश, विजय और अरुण। सभी लड़के परिश्रमी और ताकतवर थे, लेकिन दुर्भाग्य से, उनमें आपस में बिल्कुल भी मेल-जोल नहीं था। छोटी-छोटी बातों पर वे आपस में झगड़ते रहते, एक-दूसरे से ईर्ष्या करते और अक्सर मनमुटाव बनाए रखते।
रामसिंह बहुत चिंतित रहता था। वह जानता था कि अगर उसके बेटे इसी तरह लड़ते रहे, तो उसकी मृत्यु के बाद उनका जीवन दुखी हो जाएगा। वह चाहता था कि उसके बच्चे एकजुट रहें, ताकि कोई उनका नुकसान न कर सके। लेकिन वह कितना भी समझाता, बेटे उसकी बात नहीं मानते थे।

एक दिन रामसिंह बीमार पड़ गया। उसे लगा कि अब उसके पास ज्यादा समय नहीं बचा है। उसने सोचा कि अगर वह अपने बेटों को सीधे-सीधे समझाएगा, तो शायद वे नहीं मानेंगे। इसलिए उसने एक योजना बनाई।
उसने अपने पाँचों बेटों को बुलाया और कहा, “मेरे प्यारे बेटों, मेरी एक आखिरी इच्छा है। क्या तुम उसे पूरा करोगे?”
सभी बेटों ने एक साथ कहा, “जी पिताजी, हम आपकी हर आज्ञा मानेंगे।”
रामसिंह ने एक मोटा रस्सी से बंधा हुआ लकड़ियों का गट्ठर निकाला और राजू से कहा, “बेटा, इसे तोड़कर दिखाओ।”
राजू ने पूरी ताकत लगाई, लेकिन गट्ठर नहीं टूटा। फिर महेश ने कोशिश की, फिर सुरेश, विजय और अरुण—लेकिन कोई भी पूरा गट्ठर नहीं तोड़ पाया।
तब रामसिंह ने मुस्कुराते हुए कहा, “अब इस गट्ठर को खोल दो और हर एक लकड़ी को अलग-अलग तोड़ो।”
बेटों ने ऐसा ही किया। अब एक-एक करके सभी लकड़ियाँ आसानी से टूट गईं।
बेटे हैरान थे। उन्होंने पूछा, “पिताजी, यह कैसे हुआ? पूरा बंडल नहीं टूटा, लेकिन अलग-अलग लकड़ियाँ आसानी से टूट गईं?”

रामसिंह ने गंभीर होकर कहा, “बेटों, यही तो मैं तुम्हें समझाना चाहता हूँ। जब ये लकड़ियाँ एक साथ बंधी हुई थीं, तो उनमें इतनी ताकत थी कि तुम सब मिलकर भी उन्हें नहीं तोड़ पाए। लेकिन जब वे अलग हो गईं, तो हर एक कमजोर पड़ गई और आसानी से टूट गई।”
वह आगे बोला, “ठीक इसी तरह, अगर तुम लोग एकजुट रहोगे, तो कोई भी तुम्हें नुकसान नहीं पहुँचा सकता। लेकिन अगर तुम अलग-अलग रहोगे और आपस में लड़ते रहोगे, तो तुम्हारी हालत भी इन टूटी हुई लकड़ियों की तरह हो जाएगी। दुनिया तुम्हें आसानी से हरा देगी।”
पिता की यह बात सुनकर पाँचों बेटों की आँखें खुल गईं। उन्हें एहसास हुआ कि उनकी आपसी लड़ाई उन्हें कमजोर बना रही थी। उस दिन से उन्होंने प्रण लिया कि वे कभी आपस में नहीं लड़ेंगे और हमेशा एकजुट रहेंगे।
समय बीतता गया। रामसिंह की मृत्यु के बाद भी, पाँचों भाई मिलकर खेती करते, एक-दूसरे का सहारा बनते और गाँव में सम्मान से रहते। उनके एकजुट होने की वजह से कोई भी उन्हें मजबूर नहीं कर पाता था। समय बीतने के साथ उनका घर-परिवार संपन्न हो गया और सभी सुखी जीवन बिताने लगे।
शिक्षा: “एकता में ही बल है।”