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एक समय की बात है, एक गाँव में एक किसान रहता था। उसका बड़ा-सा घर था, और वह खेती-बाड़ी का काम करता था। उसने अपने घर में कुछ मुर्गे भी पाल रखे थे। उनमें से एक मुर्गा रोज़ सुबह-सवेरे “कुकड़ू-कू” की आवाज़ लगाकर पूरे गाँव को जगा देता था। उसी की वजह से गाँव वाले समय पर उठ जाते और अपने दिनचर्या शुरू कर देते।

एक दिन, गाँव के एक शरारती बच्चे ने उस मुर्गे को बहुत परेशान किया—उसे दौड़ा-दौड़ाकर तंग किया। मुर्गा बहुत नाराज़ हुआ और उसने सोचा, “अब मैं सुबह आवाज़ नहीं दूँगा। जब गाँव वाले नींद में ही रहेंगे और देर से उठेंगे, तभी उन्हें मेरी अहमियत का पता चलेगा! फिर कोई मुझे तंग नहीं करेगा।”

अगली सुबह, मुर्गे ने जानबूझकर आवाज़ नहीं निकाली। लेकिन हैरानी की बात यह थी कि गाँव वाले वैसे ही समय पर उठ गए और अपने-अपने काम में लग गए। मुर्गे ने यह देखकर सोचा, “आज तो मैंने बिल्कुल नहीं बोला, फिर भी ये लोग कैसे जाग गए?”

तभी मुर्गे को समझ में आया—“दुनिया किसी एक के बिना भी चलती रहती है।” चाहे वह आवाज़ दे या न दे, लोगों का काम चल ही जाता है। उस दिन उसने घमंड छोड़ दिया और यह सीख ली कि अपने महत्व को लेकर कभी अहंकार नहीं करना चाहिए।

शिक्षा: हमें कभी भी यह नहीं सोचना चाहिए कि हमारे बिना सब कुछ ठप्प हो जाएगा। दुनिया का पहिया सबके साथ-साथ चलता रहता है।