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सूरजसिंह नाम का एक राजा एक विशाल नगर का शासक था। राजगद्दी उसे विरासत में मिली थी, और वह अपना सारा समय ऐशो-आराम में गुज़ारता था। उसकी इस लापरवाही का फायदा उठाकर, उसके कुछ धूर्त मंत्री चुपचाप राजकोष को खाली करते जा रहे थे, और राजा को इस बात का आभास तक नहीं था।
राजा के पिता के समय का एक बुजुर्ग और अत्यंत ईमानदार रसोइया, पांडूरंग, यह सब देखकर बहुत व्यथित था। वह सोचता रहता कि इस समृद्ध नगर को बर्बाद होने से कैसे बचाया जाए।
एक शाम वह अपने घर पर इसी चिंता में डूबे हुए थे, तभी उनकी बुद्धिमान बेटी, सुलक्ष्मी, ने उनका मन की बात पूछ ही ली। पांडूरंग ने सारी समस्या उसे बता दी।
सुलक्ष्मी ने तुरंत एक अनोखा उपाय सुझाया। उसकी इस चालाक योजना को सुनकर पांडूरंग का चेहरा खुशी से चमक उठा।
अगले दिन, वह सीधे राजा सूरजसिंह के पास पहुंचे और विनम्रतापूर्वक कहा, “महाराज, आज आपके भोजन में एक भी मसाला नहीं होगा।”
राजा को तीखा और स्वादिष्ट भोजन बहुत पसंद था। उन्होंने थोड़ा नाराज़ होते हुए कहा, “पांडूरंग, तुम मेरे पिता के विश्वासपात्र हो, इसलिए मैं तुम्हारा सम्मान करता हूँ। लेकिन अगर तुम्हें लगता है कि तुम बिना मसाले के भोजन नहीं बना सकते, तो मैं एक नया रसोइया ढूंढ लूंगा।”

तब पांडूरंग ने अपना सिर झुकाया और कहा, “यह मेरी अक्षमता नहीं है, महाराज, बल्कि यह आपके राज्य की दुर्दशा है। हमारे राज्य में अब कोई किसान मसाले उगाता ही नहीं है।”
राजा हैरान होकर बोले, “ऐसा क्यों?”
पांडूरंग ने समझाया, “महाराज, फसल लगाने का खर्चा इतना ज्यादा है और मसाले बिकते ही नहीं। आम जनता के पास इतने पैसे ही नहीं कि वह अनाज खरीद सके, मसालों की बात तो दूर है। जो थोड़े-बहुत मसाले पैदा होते हैं, वे या तो महल में आ जाते हैं या फिर आपके मंत्री बिना पैसे दिए उन्हें उठा ले जाते हैं। इसलिए बाजार में मसाले न के बराबर हैं और अगर हैं भी, तो उनकी कीमत आसमान पर है।”
राजा ने पूछा, “लेकिन मेरी प्रजा इतनी गरीब क्यों है?”
अब पांडूरंग ने असली बात कही, “महाराज, क्योंकि आपका खजाना खोखला हो चुका है! आपके कुछ मंत्री इसे खाली करने में लगे हैं। अभी मसाले गायब हुए हैं, अगर यही हाल रहा, तो अगली बार अनाज भी नहीं बचेगा।”
यह सुनकर राजा सूरजसिंह की आँखें खुल गईं। उन्होंने तुरंत आदेश दिया, “पांडूरंग, आज से तुम मेरे नए महामंत्री और कोषाध्यक्ष बनोगे! और इन सभी बेईमान मंत्रियों को फाँसी पर चढ़ा दो!”
माफी माँगते हुए सभी मंत्री काँपने लगे।
तब दयालु पांडूरंग ने हस्तक्षेप किया, “महाराज, इन्हें एक आखिरी मौका दीजिए। अगर इन्होंने अपने काम को ठीक से नहीं संभाला, तो इन्हें कड़ी सजा मिलेगी।”
राजा ने पांडूरंग को पूरा अधिकार दे दिया। पांडूरंग ने न केवल एक साल में खजाने को फिर से भर दिया, बल्कि प्रजा के हित में कई काम किए, जिससे राजा के प्रति लोगों का विश्वास फिर से मजबूत हो गया।
शिक्षा: एक बुद्धिमान व्यक्ति और एक सटीक सलाह पूरे राज्य का भाग्य बदल सकती है, ठीक उसी तरह जैसे एक मजबूत रस्सी कुएं में गिरे हुए इंसान की जान बचा लेती है।

