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एक जंगल में एक पेड़ पर एक चंचल गिलहरी रहती थी। वह हमेशा डालियों पर उछल-कूद करती, नीचे उतरकर दाना चुगती और फिर वापस पेड़ पर चढ़ जाती।

एक दिन उसने सोचा—”जंगल का खाना खाते-खाते मन भर गया है। क्यों न शहर की सैर की जाए?” यह सोचकर वह सड़क किनारे एक पेड़ पर जा बैठी। कुछ ही देर में वहाँ से एक सब्जियों से भरा ट्रक गुजरा। गिलहरी उस पर कूद गई और मस्ती से सब्जियाँ खाती हुई शहर पहुँच गई।

ट्रक रुका तो वह कूदकर एक दुकान में घुस गई, जहाँ अनाज रखा था। वहाँ खाते समय दुकानदार ने उसे भगा दिया। भागते-भागते वह एक पेड़ के नीचे बैठे एक आदमी के पास पहुँची, जो टिफिन खोलकर खाने लगा। जैसे ही वह पानी लेने गया, गिलहरी ने चुपके से उसकी रोटी और अचार का टुकड़ा खा लिया। आदमी को देखकर वह फुर्ती से पेड़ पर चढ़ गई।

इसके बाद वह एक जगह पहुँची, जहाँ होली के रंग तैयार किए जा रहे थे। दो बड़े ड्रमों में सोने और चाँदी जैसे रंग घुले हुए थे। गिलहरी ने सोचा कि यह कोई स्वादिष्ट चीज है और उसे चाटने लगी। तभी वह फिसलकर सोने वाले रंग के ड्रम में गिर गई!

ड्रम से छलाँग मारते हुए रंग की बूँदें एक महिला पर गिरीं। लोगों ने देखा तो गिलहरी को बाहर निकाला। वह काँपती हुई वहीं बैठी रही। धूप लगने पर उसका रंग सूख गया, और उसका पूरा शरीर सुनहरा हो गया!

खुश होकर वह फिर सड़क किनारे बैठ गई। एक बस आई तो वह उसकी छत पर चढ़ गई। शाम को बस जंगल के रास्ते से गुजरी, और एक ढाबे के पास रुकी तो गिलहरी उतरकर अपने पेड़ पर लौट आई।

सुबह जंगल के सभी जानवर उसके सुनहरे रंग को देखकर हैरान रह गए। एक कबूतर ने पूछा—”गिलहरी बहन, तुम कहाँ से आई हो?” गिलहरी ने झट से कहा—”मैं परियों के देश से आई हूँ, जहाँ सभी जानवर सोने के बने होते हैं!”

यह सुनकर सभी जानवर उसकी खूब सेवा करने लगे। एक कौए ने उससे कहा—”मुझे भी अपने साथ ले चलो, मैं भी सोने जैसा बनना चाहता हूँ!” गिलहरी हँसकर बोली—”ठीक है, लेकिन तब तक तुम मेरी सेवा करो!”

कुछ दिन बाद एक तेज बारिश में गिलहरी का रंग धुलने लगा। जानवरों को सच्चाई पता चली तो वे गुस्सा हो गए। सियार चिल्लाया—”इसने हमें बेवकूफ बनाया है!”

तभी शेर आया और गिलहरी ने सारी बात सच-सच बता दी। शेर हँसकर बोला—”आज तो हम तुम्हें माफ कर देते हैं, लेकिन कभी शहर मत जाना!” गिलहरी ने माफी माँगते हुए कौए से वादा किया कि अब वह उसके लिए दाना लाया करेगी।

बारिश में नहाते हुए गिलहरी ने सोचा—”अब कभी झूठ नहीं बोलूँगी!” और वह फिर से अपनी पुरानी जिंदगी में खुशी-खुशी रहने लगी।