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बहुत पहले की बात है, एक छोटे से गाँव के पास एक विशाल बरगद का पेड़ था। उस पेड़ पर एक नर और मादा कौआ अपने बच्चों के साथ रहते थे। कुछ समय बाद, वहाँ एक साँप आया और उसने पेड़ के खोखल में अपना घर बना लिया। जब भी कौए भोजन की तलाश में बाहर जाते, साँप उनके घोंसले में घुसकर अंडों से निकले छोटे बच्चों को खा जाता। यह घटना दो बार हुई, जिससे कौओं को बहुत दुख हुआ। मादा कौए ने कहा, “हमें यह जगह छोड़ देनी चाहिए, क्योंकि जब तक यह साँप यहाँ रहेगा, हमारे बच्चे सुरक्षित नहीं रह पाएँगे।”

नर कौआ भी बहुत परेशान था, लेकिन उसे साँप से निपटने का कोई तरीका नहीं सूझ रहा था। आखिरकार, उन्होंने अपने बुद्धिमान दोस्त गीदड़ से सलाह लेने का फैसला किया। वे गीदड़ के पास गए और अपनी समस्या बताई। गीदड़ ने कहा, “चिंता करने से समस्या का हल नहीं निकलता। शत्रु को हराने के लिए बुद्धिमानी से काम लेना चाहिए।” गीदड़ ने कुछ पल सोचा और फिर उन्हें साँप से छुटकारा पाने की एक चतुर योजना बताई।

अगली सुबह, कौआ और कौव्वी उड़ते हुए नदी के किनारे पहुँचे, जहाँ रानी अपनी दासियों के साथ नहाने आती थी। रानी ने अपने कपड़े और गहने उतारकर पानी में प्रवेश किया। कुछ दूरी पर खड़े दरबान उनके सामान की देखभाल कर रहे थे। कौव्वी ने रानी का हार उठाया और उड़ गई। कौआ जोर-जोर से काँव-काँव करता हुआ उसके पीछे-पीछे उड़ा ताकि दरबानों का ध्यान उस तरफ खींच सके।

दरबानों ने कौओं को हार ले जाते देखा और तलवारें तथा भाले लेकर उनका पीछा करने लगे। वे जल्दी ही बरगद के पेड़ के पास पहुँचे, जहाँ उन्होंने देखा कि कौए ने हार को साँप के बिल में फेंक दिया था। दरबानों ने एक लंबी लाठी की मदद से हार निकालने की कोशिश की। इससे साँप चिढ़ गया और फुंफकारता हुआ बाहर निकला। दरबान डर गए और उन्होंने साँप को लाठी से पीट-पीटकर मार डाला। फिर वे हार लेकर वापस चले गए।

कौआ और कौव्वी ने साँप को मरा हुआ देखकर खुशी मनाई। उन्होंने चतुर गीदड़ को धन्यवाद दिया और उसकी सलाह के लिए आभार व्यक्त किया। इसके बाद, वे अपने बच्चों के साथ बरगद के पेड़ पर खुशी-खुशी रहने लगे।

शिक्षा

चिंता करने से समस्या का समाधान नहीं होता। बुद्धिमानी और सही योजना से ही हर मुश्किल का हल निकाला जा सकता है।